नियम 10
प्रथम पद में कहीं पर भी ऋ, र् या ष् तथा द्वितीय पद में कहीं पर भी “न” हो तो “न” का “ण” हो जाता है।प्रथम पद ऋ, र या ष् यथावत रहते हैं।
ऋ/र्/ष् + न
= यथावत+ ण
नियम 10 के उदाहरण
भर् + अन = भरण,
भूष् + अन = भूषण,
प्र + मान = प्रमाण,
परि + मान = परिमाण,
परि + नाम = परिणाम,
राम + अयन = रामायण,
परि + नय = परिणय,
नर + अयन = नारायण,
ऊष् + न = ऊष्ण,
हर + न = हरण,
शर + न = शरण,
विष् + नु = विष्णु,
कृष् + न = कृष्ण,
कृष् + ना = कृष्णा,
पुरा + न = पुराण आदि।
नियम 11
किसी स्वर का मेल
छ् से हो तो
छ् के स्थान पर
” च्छ्” हो जाता है।
(च् का आगम हो
जाता है।)
स्वर + छ् = च् का आगम + छ् यथावत
नियम 11 के उदाहरण
अनु + छेद = अनुच्छेद,
परि + छेद
= परिच्छेद,
आ +
छादन = आच्छादन,
स्व + छन्द = स्वच्छंद,
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया।
नियम 12
प्रथम पद के अंत में अ या आ के अलावा अन्य कोई स्वर आ जाए और द्वितीय पद का प्रथम वर्ण स् हो तो स् के स्थान पर ष् हो जाता है।
स्वर(अ/आX) + स्
= ष्
नियम 12 के उदाहरण
अभि + सेक = अभिषेक,
वि + सम
= विषम,
सु + सुप्त = सुषुप्त,
सु + समा = सुषमा,
अभि + सिक्त = अभिषिक्त।
(अपवादः- वि + सर्ग = विसर्ग, अनु + सार = अनुसार, वि + स्मरण = विस्मरण, वि + सर्जन = विसर्जन)