परिभाषा
विसर्ग {:} के साथ स्वर या व्यजंन के मेल से उत्पन्न विकार/परिवर्तन/ बदलाव /दोष को विसर्ग सन्धि कहते है।
यदि विसर्ग का मेल
च या छ से हो तो विसर्ग का - श् हो जाता है।
ट या ठ से हो तो विसर्ग का - ष् हो जाता है।
त या थ से हो तो विसर्ग का - स् हो जाता है।
विसर्ग (:) + च/ छ = श् + यथावत
विसर्ग (:) + ट/ ठ = ष् + यथावत
विसर्ग (:) + त/ थ = स् + यथावत
नि: + छल = निश्छल,
नि: + थुर = निष्ठुर,
नि: + तार = निस्तार,
पुन: + च = पुनश्च,
अन्त: + तल = अन्तस्तल,
नि: + चित = निश्चित,
नि:+ चिंत = निश्चिंत,
नि: + चय = निश्चय,
नि: + चेष्ट = निश्चेष्ट,
दु: + चरित्र = दुश्चरित्र,
हरि: + चन्द्र = हरिश्चन्द्र,
यश: + शरीर = यशश्शरीर,
मन: + ताप = मनस्ताप,
पुर: + सर = पुरस्सर,
बहि: + स्थल = बहिस्थल,
मरु: + स्थल = मरुस्थल,
दु: + तर = दुस्तर,
नि: + तेज = निस्तेज,
मन: + चिकित्सक = मनश्चिकित्सक,
नियम 2
यदि विसर्ग का मेल श, ष या स से तो विसर्ग जैसा का जैसा रहता है उसमे कोई परिवर्तन नही होता है, या उसके स्थान पर आगे वाला वर्ण आधा हो जाता है।
विसर्ग (:) + श/ ष/ स = : / श्/ ष्/ स् + यथावत
नियम 2 के उदाहरण
दु: + शील = दुश्शील / दुःशील,
नि: + सन्देह = निस्संदेह / निःसंदेह,
नि: + शुल्क = निश्शुल्क / निःशुल्क,
नि: + स्वर्थ = निस्स्वार्थ / निःस्वार्थ,
दु: + साध्य = दुस्साध्य / दुःसाध्य,
दु: + साहस = दुस्साहस / दुःसाहस,
नि: + संकोच = निस्संकोच / निःसंकोच,
नि: + सृत = निस्सृत / निःसृत,
दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न / दुःस्वप्न
यदि विसर्ग के पहले इ या उ हो और विसर्ग का मेल क, ख, ट,ठ, प, फ से हो तो विसर्ग का ष् हो जाता है।
इ/उ+ : + क/ख/ट/ठ/प/फ = ष् + यथावत
नियम 3 के उदाहरण
दु: + कर = दुष्कर ,
दु: + कर्म = दुष्कर्म,
नि: + पाप = निष्पाप,
दु: + प्रकृति = दुष्प्रकृति,
दु: + प्रवृति = दुष्प्रवृति,
नि: + कंटक = निष्कंटक,
नि: + कंलक = निष्कलंक,
नि: + कपट = निष्कपट,
नि: + काम = निष्काम,
परि: + कार = परिष्कार,
आवि: + कार = आविष्कार,
बहि: + कार = बहिष्कार,
चतु: + पथ = चतुष्पथ,
चतु: + पाद = चतुष्पाद,
दु: + परिणाम = दुष्परिणाम,
दु: + प्रभाव = दुष्प्रभाव,
नि: + कारण = निष्कारण,
दु: + काल = दुष्काल,
नि: + प्राण = निष्प्राण
(दुःख अपवाद है।)
नमः, तिरः, भाः, वयः, पुरः का योग कृ धातु से बने शब्द से होने पर विसर्ग दन्त्य स् में बदल जाता है।
(कर, कार, करण, कृत, कृति, क)
नमः /तिरः /भाः /वयः /पुरः + कृ धातु = स् + यथावत
नियम 4 के उदाहरण
तिर: + कृत = तिरस्कृत,
नम: + कार = नमस्कार,
पुर: + कार = पुरस्कार,
भा: + कर = भास्कर
सम्पूर्ण व्याख्या सहित विडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें-