परिभाषाः-
जिसमें दोनों ही शब्दों के मूल अर्थों से भिन्न कोई तीसरा ही अर्थ निकले अर्थात दोनों पद अप्रधान तथा अन्य पद प्रधान समास को बहुव्रीहि समास कहते हैं। इसमें दोनों पद किसी अन्य अर्थ को व्यक्त करते हैं दोनो ही पद अपना मूल अर्थ खो देते है और पूरा समस्तपद ही एक विशेष अर्थ के लिए रुढ़ हो जाता है।
बहुव्रीहि समास मूलतः अपनी शाब्दिक संरचना में तो अव्ययभावी, द्वंद्व या तत्सुरुष होता है किंतु विशिष्ट अर्थ देने के कारण वह बहुव्रीहि बनता है। अतः प्रतिकूल = कूल के विपरीत (विरोधी) अव्ययभावी की, लंबोदर = लंबा है उदर जिसका (गणेश) तत्पुरुष की एवं लीपा-पोती = लीपना और पोतना (असलियत को छिपाना) द्वंद्व समास की संरचना लिए हुए हैं, किंतु ये विशिष्ट अर्थ देने के कारण बहुव्रीहि समास ही हैं।
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका (शिव)
शूलपाणी = शूल है जिसके पाणी में (शिव)
शिवेश = शिवा (पार्वती) का ईश (शिव)उमेश = उमा का ईश (शिव)
शैलजा = शैल (हिमालय) से जन्मी (पार्वती)
शैलनंदिनी = शैल (हिमालय) की नंदिनी (पार्वती)
षडानन = षट् है आनन जिसके (कार्तिकेय)
षण्मुख = षट् मुख है जिसके (कार्तिकेय)
गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
चक्रधर = चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)
चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
श्रीश = श्री (लक्ष्मी) के ईश (विष्णु)
पद्मनाभ = पद्म है जिसकी नाभी में (विष्णु)
मुरलीधर = मुरली को धारण करने वाले(श्रीकृष्ण)
मुरारि = मुर नामक राक्षस के अरि (कृष्ण)
निशाचर = निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
देवराज = देवताओं का राजा (इन्द्र)
सहस्राक्ष = सहस्र अक्षों वाला (इन्द्र)
वज्रपाणी = वज्र है जिसके पाणी में (इन्द्र)
पंकज = पंक में जन्मा (कमल)
जलज = जल में जन्मा (कमल)
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सारंगपाणी = सारंग (धनुष) है जिसके पाणी में (राम)
हलधर = हल को धारण करने वाला (बलराम)
अनंग = बिना अंग का (कामदेव)
पुष्पधन्वा = पुष्प का धनुष है जिसका (कामदेव)
कुसुमशर = कुसुम का शर बाण है जिसका (कामदेव)
मकरध्वज = मकर का ध्वज है जिसके पास (कामदेव)
मनोज = मन में जन्म लेने वाला (कामदेव)
चक्षुश्रवा = चक्षुओं से श्रवण करने वाला (साँप)
रत्नगर्भा = रत्न है जिसके गर्भ में (पृथ्वी)
उत्तरपूर्व = उत्तर व पूर्व के बीच की दिशा (ईशान)
वज्रांग = वज्र के समान है जिसका अंग (हनुमान)
गुरुमुखी = गुरु के मुख से निकली हुई (पंजाबी लिपि)
रक्तलोचन = रक्त वर्ण के है जिसके लोचन (कबूतर)
NOTE- जिस समस्तपद से किसी समूह का बोध होता है वहाँ द्विगु समास और किसी विशेषपद या अन्यपद का बोध होने पर बहुव्रीहि समास होता है।
पंजाब = पाँच नदियों का संगम (द्विगु)
पंजाब = भारत का एक राज्य (बहुव्रीहि)
त्रिनेत्र = तीन नेत्रों का समूह (द्विगु)
त्रिनेत्र = तीन नेत्र है जिसके = शिव (बहुव्रीहि)
तिरंगा = तीन रंग का समूह (द्विगु)
तिरंगा = भारतीय राष्ट्र ध्वज (बहुव्रीहि)
चतुर्भुज = चार भुजाओं का समूह (द्विगु)
चतुर्भुज = चार भुजाएँ है जिसके = विष्णु (बहुव्रीहि)
अष्टाध्यायी = आठ अध्यायों का समूह (द्विगु)
अष्टाध्यायी = पाणीनीकृत व्याकरण = ग्रन्थ विशेष (बहुव्रीहि)
NOTE- जिस समस्तपद में विशेष्य-विशेषण या उपमेय-उपमान संबंध हो वहाँ कर्मधारय समास और किसी विशेषपद या अन्यपद का बोध होने पर बहुव्रीहि समास होता है।
पीताम्बर = पीत अम्बर (वस्त्र) (कर्मधारय)
पीताम्बर = पीत है जिसके अंबर = विष्णु (बहुव्रीहि)
स्वेताम्बर = स्वेत अम्बर (वस्त्र) (कर्मधारय)
स्वेताम्बर = स्वेत वस्त्रों को धारण करने वाली (सरस्वती)
वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
NOTE "वाक्यांश के लिये एक शब्द" में बहुव्रीहि समास होता है।
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