परिभाषा –
जब इ/ई,उ/ऊ,ऋ के आगे कोई भी भिन्न स्वर आता है तो इ/ ई का - य् और उ/ऊ का - व् और ऋ का - र् हो जाता है तथा दूसरे पद का प्रथम वर्ण यथावत रहता है, वह सन्धि यण स्वर कहलाती है।
इ / ई + भिन्न स्वर = य् + भिन्न स्वर यथावत
उ / ऊ + भिन्न स्वर = व् + भिन्न स्वर यथावत
ऋ + भिन्न स्वर = र् + भिन्न स्वर यथावत
इ / ई + भिन्न स्वर = य् + भिन्न स्वर यथावत- के उदाहरण
मति + अनुसार = मत्यनुसार,
रीति + अनुसार = रीत्यनुसार,
प्रति + आर्वतन = प्रत्यावर्तन,
प्रति + एक = प्रत्येक,
प्रति + अक्ष = प्रत्येक्ष,
इति + आदि = इत्यादि,
यदि + अपि = यद्यपि,
अति + अधिक = अत्यधिक,
अधि + आपक = अध्यापक,
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक,
अति + आधुनिक = अत्याधुनिक,
अधि + आदेश = अध्यादेश,
अधि + अक्ष = अध्यक्ष,
अभि + अर्थी = अभ्यर्थी,
अति + आचार = अत्याचार,
देवी + आलय = देव्यालय,
वि + आस = व्यास,
वि + अय = व्यय,
नि + ऊन = न्यून,
परि + अंक = पर्यंक,
प्रति + आशा = प्रत्याशा आदि।
उ / ऊ + भिन्न स्वर = व् + भिन्न स्वर यथावत- के उदाहरण
तनु + अंगी = तन्वंगी,
अनु + अय = अन्वय,
सु + अल्प = स्वल्प,
सु + अच्छ = स्वच्छ,
सु + आगत = स्वागत,
अनु + इति = अन्विति,
अनु + एषण = अन्वेषण,
वधू + आगमन = वघ्वागमन,
मधु + अरि = मध्वरि,
मधु + आचार्य = मध्वाचार्य, आदि।
ऋ + भिन्न स्वर = र् + भिन्न स्वर यथावत- के उदाहरण
मातृ + आदेश = मात्रादेश,
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा,
मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा,
पितृ + अंश = पित्रंश,
मातृ + अंश = मात्रंश,
पितृ + अनुमति = पित्रनुमति,
मातृ + अनुमति = मात्रनुमति आदि।
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