06 May, 2021

visarga sandhi in hindi rule- 9,10,11 / विसर्ग सन्धि नियम- 9,10,11 हिंदी व्याकरण

 नियम 9

यदि विसर्ग के पहले इ या उ हो और विसर्ग का मेल र से हो तो विसर्ग का लोप होकर प्रथम पद के इ/उ दीर्घ स्वर में बदल जाते है।

/+ : + = (/ का दीर्घ स्वर ) लोप + यथावत

 


नियम 9 के उदाहरण

 


नि: + रोग = नीरोग,

नि: + रस =  नीरस,

नि: + रन्ध्र =  नीरंध्र,

नि: + रव =  नीरव,


दु: + राज = दूराज

 

नियम 10

विसर्ग के पहले यदि अ हो और विसर्ग के बाद अ को छोड़कर कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।

+ : + कोई स्वर (अ x) = लोप + यथावत

 


नियम 10 के उदाहरण

 


अत: + एव = अतएव,

तत: + एव = ततएव,

यश: + इच्छा = यशइच्छा

 

 नियम 11

विसर्ग के पहले यदि अ हो और विसर्ग के बाद क, ख या प, फ हो तो विसर्ग, विसर्ग में ही बदलता है। (विसर्ग में कोई विकार या परिवर्तन नही होता है।)

: +  /// :  + यथावत

 


नियम 11 के उदाहरण

 


प्रातः + काल = प्रातःकाल,

मनः + कामना = मनःकामना

यशः + कामनायशःकामना

अंतः + करणअंतःकरण

रजः + कणरजःकण

अंतः + पुर = अंतःपुर,

अधः +पतन = अधःपतन,

पयः + पान = पयःपान,

 

सम्पूर्ण व्याख्या सहित विडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें-

https://youtu.be/DkvfdphAiPo


 

05 May, 2021

visarga sandhi in hindi rule-7, 8 / विसर्ग सन्धि नियम- 7, 8 हिंदी व्याकरण

 नियम 7

विसर्ग के पहले यदि अ और आ को छोड़कर कोई भिन्न स्वर हो और आगे किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवा वर्ण हो अथवा य्, र्, ल्, व् या स्वर हो तो विसर्ग का र् हो जाता है।

कोई स्वर (अ/ x) + : + III/IV/V/य्/र्/ल्/व्  = र् + यथावत


नियम 7 के उदाहरण


नि: + अर्थक = निरर्थक
,

नि: + धन = निर्धन,

नि: + भर = निर्भर,

नि: + जन = निर्जन,

नि: + जीव = निर्जीव,

नि: + जल = निर्जल,

नि: + जला = निर्जला,

नि: + झर = निर्झर,

नि: + मल = निर्मल,

नि: + मान = निर्माण,


नि: + विवाद = निर्विवाद,

नि: + विकार = निर्विकार,

नि: + आदर = निरादर,

नि: + आधार = निराधार,

नि: + दोष = निर्दोष,

नि: + वहन = निर्वहन,

नि: + गुण = निर्गुण,

नि: + मम = निर्मम,

नि: + भय = निर्भय,

नि: + लोभ = निर्लोभ,

नि: + उपाय = निरुपाय,

नि: + आहार = निराहार,

नि: + अक्षर = निरक्षर,

नि: + आनन्द = निरानन्द,

नि: + अंतर = निरंतर,

नि: + आपद = निरापद,

नि: + वेद = निर्वेद,

नि: + दय = निर्दय,

नि: + बोध= निर्बाध,

नि: + धूम = निर्धूम,

नि: + मोह = निर्मोह,

नि: + अवलम्ब = निरवलम्ब,

नि: + अभिमान = निरभिमान,

नि: + ईक्षण = निरीक्षण,

दु: + बुद्धि = दुर्बुद्धि,

दु: + लभ्य = दुर्लभ्य,

दु: + लभ = दुर्लभ,

दु: + बल = दुर्बल,

दु: + गम= दुर्गम,

दु: + गन्ध = दुर्गंध,

दु: + गुण = दुर्गुण,

दु: + घटना = दुर्घटना,

दु: + जन = दुर्जन,

दु: + मति = दुर्मति,

दु: + नीति = दुर्नीति,

दु: + गति = दुर्गति,

दु: + दिन = दुर्दिन,

दु: + वह = दुर्वह,

दु: + भावना = दुर्भावना,

दु: + भाग्य = दुर्भाग्य,

दु: + अवस्था = दुरवस्था,

दु: + व्यवहार =  दुर्व्यवहार,

दु: + आत्मा =  दुरात्मा,

दु: + आशा =  दुराशा,

प्रादु:+ भाव = प्रादुर्भाव,

आवि: + भूत= आविर्भूत,

आवि: + भाव= आविर्भाव,

आशी: + वाद = आशीर्वाद,

आशी: + वचन = आशीर्वचन,

आयु: + वेद = आयुर्वेद,

ज्योति: + मय = ज्योतिर्मय

ज्योति: + मठ = ज्योतिर्मठ,

चतु: + दिश = चतुर्दिश,

बहि:+ मुख = बहिर्मुख,

बहि: + गमन = बहिरागमन,

बहि: + आक्रमण = बहिराक्रमण,

नि:+ आमिष = निरामिष,

दु: + आचार = दुराचार,

दु: + आचारी = दुराचारी,

दु: + उपयोग = दुरुपयोग,

पुनः + ईक्षण = पुनरीक्षण,

पुनः + उत्थान = पुनरुथान,

पुनः + उक्ति = पुनरुक्ति,

पुनः + जन्म = पुनर्जन्म,

चतुः + अंग = चतुरंग

(निः और दुः का उपसर्ग रूप निम्न प्रकार है- निः- निर्/निस् और दुः- दुर्/दुस् अर्थात संधि में निः और दुः होता है लेकिन इनसे बने हुए शब्दों में उपसर्ग निर्/निस् और दुर्/दुस् होता है।)

 

नियम 8

अंतः, पुनः, प्रातः का योग किसी भी वर्ग के तीसरे, चौथे और पाँचवे वर्ण से हो अथवा य्, र्, ल्, व् ,ह् या स्वर से हो तो विसर्ग का र् हो जाता है।

अंतः/पुनः/प्रातः + III/IV/V/य्/र्/ल्/व्/ह् = र् + यथावत


नियम 8 के उदाहरण



अंत: + अंग = अन्तरंग,

अंत: + निहित = अंतर्निहित,

अंत: + आत्मा = अन्तरात्मा,

अंत: + राष्ट्रीय = अंतर्राष्ट्रीय,

अंत: + धान = अंतर्धान,

अंत: + गत =  अंतर्गत,

अंत: + मुखी =  अंतर्मुखी,

अंत: + देशीय =  अंतर्देशीय,

अंत: + द्वंद्व = अंतर्द्वंद्व

अंत: + यामी = अंतर्यामी,

अंत: + दृष्टि = अंतर्दृष्टी,

पुनः + आगमन =  पुनरागमन,

पुनः + उद्भव =   पुनरुद्भव,

पुनः + उत्थान  =  पुनरुत्थान,

पुनः + आवर्तन =   पुनरावर्तन,

पुनः + आवृति =  पुनरावृति,

पुनः + विवाह =  पुनर्विवाह,



पुनः + जागरण =  पुनर्जागरण,

पुनः + जन्म =  पुनर्जन्म,

पुनः + आख्यान =  पुनराख्यान,

पुनः + निवेदन =   पुनर्निवेदन,

प्रातः + आश =  प्रातराश (कलेवा)

(अंतः और पुनः का संस्कृत में अंतर् और पुनर् अव्यय रुप है।)


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https://youtu.be/eQN23PUySOA

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