04 May, 2021

visarga sandhi in hindi rule-5, 6 / विसर्ग सन्धि नियम- 5,6 हिंदी व्याकरण

 नियम 5

विसर्ग के पहले अ और विसर्ग के बाद य, , , , ह या तीसरा, चौथा वर्ण हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।

+: + /////III/IV  = + यथावत




नियम 5 के उदाहरण



तेज: + राशि = तेजोराशी,

तेज: + पुंज = तेजोपुंज,

तेज: + मय =  तेजोमय,

अध: + गति = अधोगति,

अध: + वस्त्र = अधोवस्त्र,

अध: + लिखित = अधोलिखित,

अध: + गामी = अधोगामी,

मन: + रथ = मनोरथ,

तप: + बल = तपोबल,

तप: + वन = तपोवन,

तप: + मय = तपोमय,

तप: + भूमि = तपोभूमि,

मन: + हर = मनोहर,

मन: + विज्ञान  = मनोविज्ञान,

मन: + भाव = मनोभाव,

मन: + गत =  मनोगत,

मन: + रम = मनोरम,

मन: + ज = मनोज,



मन: + विनोद =  मनोविनोद,

मन: + रंजन = मनोरंजन,

मन: + विकार = मनोविकार,

मन: + बल = मनोबल,

मन: + नीत = मनोनीत,

यश: + गान = यशोगान,

यश: + गाथा = यशोगाथा,

यश: + धरा = यशोधरा,

यश: + धन = यशोधन,

यश: + लाभ = यशोलाभ,

रज: + गुण = रजोगुण,

पय: + द = पयोद,

पय: + धि = पयोधि,

पय: + धर = पयोधर,

सर: + ज = सरोज,

यश: + दा = यशोदा,

सर: + वर = सरोवर,

शिर: + मणी = शिरोमणी,

शिर: + रुह = शिरोरुह

 

नियम 6

विसर्ग के पहले अ और बाद में भी अ हो तो विसर्ग का ओ या ओ+अवग्रह (ऽ) हो जाता है। और द्वितीय पद के अ का लोप हो जाता है।

+ : + = /ओ+ऽ + लोप



नियम 6 के उदाहरण


यश: + अभिलाषा = यशोभिलाषा / यशोऽभिलाषा

मन: + अभिराम = मनोभिराम / मनोऽभिराम,

मन: + अनुकूल = मनोनुकूल / मनोऽनुकूल,

मन: + अविराम = मनोविराम / मनोऽविराम,

मन: + अनुसर = मनोनुसार / मनोऽनुसार,

प्रथम: + अध्याय = प्रथमोध्याय / प्रथमोऽध्याय,


सम्पूर्ण व्याख्या सहित विडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें-

 https://youtu.be/PAGRyCF_SLo

03 May, 2021

visarga sandhi in hindi rule-1, 2, 3, 4 / विसर्ग सन्धि नियम- 1, 2, 3, 4 हिंदी व्याकरण

परिभाषा

विसर्ग {:} के साथ स्वर या व्यजंन के मेल से उत्पन्न विकार/परिवर्तन/ बदलाव /दोष को विसर्ग सन्धि कहते है।




नियम
1

यदि विसर्ग का मेल

या से हो तो विसर्ग का - श् हो जाता है।

या से हो तो विसर्ग का - ष् हो जाता है।

या से हो तो विसर्ग का - स् हो जाता है।

विसर्ग (:)  +  /    =   श्  +  यथावत

विसर्ग (:)   + /     =    ष्  +  यथावत

विसर्ग (:)  + /     =    स्  +  यथावत

नियम
1 के  उदाहरण

नि: + छल = निश्छल,

नि: + थुर = निष्ठुर,

नि: + तार = निस्तार,

पुन: + च = पुनश्च,

अन्त: + तल  = अन्तस्तल,

नि: + चित = निश्चित,

नि:+ चिंत = निश्चिंत,

नि: + चय = निश्चय,

नि: + चेष्ट = निश्चेष्ट,

दु: + चरित्र = दुश्चरित्र,

हरि: + चन्द्र = हरिश्चन्द्र,

यश: + शरीर = यशश्शरीर,

मन: + ताप = मनस्ताप,

पुर: + सर = पुरस्सर,

बहि: + स्थल = बहिस्थल,

मरु: + स्थल = मरुस्थल, 

दु: + तर  = दुस्तर,

नि: + तेज = निस्तेज,

मन: + चिकित्सक = मनश्चिकित्सक,

 

नियम 2

यदि विसर्ग का मेल , या से तो विसर्ग जैसा का जैसा रहता है उसमे कोई परिवर्तन नही होता है, या उसके स्थान पर आगे वाला वर्ण आधा हो जाता है।

विसर्ग (:)   + / /    =  : / श्/ ष्/ स् +   यथावत

नियम 2 के  उदाहरण

दु: + शील  = दुश्शील / दुःशील,

नि: + सन्देह = निस्संदेह / निःसंदेह,

नि: + शुल्क = निश्शुल्क / निःशुल्क,

नि: + स्वर्थ = निस्स्वार्थ / निःस्वार्थ,

दु: + साध्य  = दुस्साध्य / दुःसाध्य,

दु: + साहस  = दुस्साहस / दुःसाहस,

नि: + संकोच = निस्संकोच / निःसंकोच,

नि: + सृत = निस्सृत / निःसृत,

दु: + स्वप्न  = दुस्स्वप्न / दुःस्वप्न

 

 नियम 3

यदि विसर्ग के पहले या हो और विसर्ग का मेल , , ,, , से हो तो विसर्ग का ष् हो जाता है।

/+ : +  ///// = ष्  + यथावत

नियम 3 के उदाहरण

दु: + कर = दुष्कर ,

दु: + कर्म = दुष्कर्म,

नि: + पाप = निष्पाप,

दु: + प्रकृति  = दुष्प्रकृति,

दु: + प्रवृति  = दुष्प्रवृति,

नि: + कंटक = निष्कंटक,

नि: + कंलक = निष्कलंक,

नि: + कपट = निष्कपट,

नि: + काम = निष्काम,

परि: + कार = परिष्कार,

आवि: + कार = आविष्कार,

बहि: + कार = बहिष्कार,

चतु: + पथ = चतुष्पथ,

चतु: + पाद = चतुष्पाद,

दु: + परिणाम = दुष्परिणाम,

दु: + प्रभाव = दुष्प्रभाव,

नि: + कारण = निष्कारण,

दु: + काल = दुष्काल,

नि: + प्राण = निष्प्राण

(दुःख अपवाद है।)

 

 नियम 4

नमः, तिरः, भाः, वयः, पुरः का योग कृ धातु से बने शब्द से होने पर विसर्ग दन्त्य स् में बदल जाता है।

(कर, कार, करण, कृत, कृति, )

नमः /तिरः /भाः /वयः /पुरः + कृ धातु  = स् + यथावत

नियम 4 के  उदाहरण

तिर: + कृत = तिरस्कृत,

नम: + कार = नमस्कार,

पुर: + कार = पुरस्कार,

भा: + कर = भास्कर

सम्पूर्ण व्याख्या सहित विडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें-

 https://youtu.be/G2sQeXCwMbU

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