'समास' शब्द का शाब्दिक अर्थ - संक्षिप्त करना (संक्षिप्तिकरण)
“समास” शब्द का निर्माण -
सम् + आस
अच्छी तरह + बैठना
हर भाषा अपने में कुछ ऐसा कौशल विकसित करती है कि वह कम-से-कम शब्दों के प्रयोग से अधिक अर्थ व्यक्त कर सके, इसके लिए शब्द-प्रयोग में संक्षिप्तता होना आवश्यक है। समास का जन्म कम से कम शब्दों द्वारा वही पूर्ण अर्थ व्यक्त करने की प्रवृत्ति के कारण ही हुआ है। यह शब्द-प्रयोग की कमी दो तरह से हो सकती है-
एक तो शब्द कम करके, जैसे “दिन और रात” में तीन शब्दों के समूह में से एक शब्द “और” को कम कर दें और “दिन-रात” दो शब्दों द्वारा वहीं “दिन और रात” वाला अर्थ- व्यक्त कर दिया जाए।
दूसरी कोटि की संक्षिप्तता दो शब्दों को पास में बिठाने पर दोनों शब्दों के अर्थों से भिन्न एक तीसरा अर्थ देने से संबंधित है-एक नए अर्थ के लिए किसी नए शब्द का प्रयोग न कर पुराने शब्दों से हो नया अर्थ निकालकर ऐसा किया जाता है, जैसे- लंबोदर में गणेश का अर्थ दे देना जबकि लंबा और उदर दोनो शब्दों में से अलग-अलग किसी का अर्थ गणेश नही है।
शब्दों की इस तरह की संक्षिप्तता को समास कहा गया है।
जब दो या दो से अधिक पद बीच की विभक्ति को छोड़कर मिलते है, तो पदों के इस मेल को समास कहते है। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया सार्थक शब्द बनता है या समास की प्रक्रिया से बना नया शब्द “समस्तपद/सामासिकपद” कहलाता है। विग्रह करते समय बीच की विभक्ति वापस जोड़ दी जाती है।
1 संधि में वर्णों का मेल होकर परिवर्तन होता है, तथा समास में पदों का मेल होता है और परिवर्तन होना आवश्यक नही है। इसमें विभक्तियों का लोप होता है। दूसरे शब्दों में संधि वणों का मिलन तथा समास में शब्दों का मिलन होता हैं।
2 सन्धि के तोड़ने को ‘विच्छेद’ कहते है, जबकि समास का ‘विग्रह’ होता है।
3 हिंदी में सन्धि केवल तत्सम पदों में होती है, जबकि समास संस्कृत तत्सम, हिन्दी, उर्दू हर प्रकार के पदों में।
4 समास के पदों में संधि हो यह आवश्यक नहीं है।
5 यह जरूरी नहीं है कि जहाँ-जहाँ समास हो वहाँ संधि भी हो ही, संधि ध्वनि के स्तर की प्रक्रिया है क्योंकि इनमें दो ध्वनियों के मिलने से ध्वनिगत परिवर्तन होता है, जबकि समास शब्द के स्तर की प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें एक से अधिक शब्दों को मिलाकर एक सार्थक शब्द बनाया जाता है।
समास में प्रायः दो शब्दों (पदों) का योग होता है। उन दो शब्दों में से किसी एक शब्द का अर्थ प्रमुख होता है।
पदों की प्रधानता के आधार पर समास के भेद
1 अव्ययीभाव समास - प्रथम पद प्रधान
2 तत्पुरुष समास - द्वितीय पद प्रधान
तत्पुरुष समासके उप भेद-
(क) कर्मधारय समास - द्वितीय पद (ख) द्विगु समास - द्वितीय पद
3 द्वंद्व समास - दोनो पद प्रधान
4 बहुव्रीहि समास - तृतीय (अन्य) पद प्रधान